
उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती को मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से एक क्रांतिकारी योजना की शुरुआत की है। इस योजना के अंतर्गत अब कृषि सखी के माध्यम से किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इस पहल का उद्देश्य खेती में रासायनिक तत्वों की निर्भरता को कम कर रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy आधारित, पर्यावरण-अनुकूल खेती को प्रोत्साहित करना है।
प्रदेश के कृषि विभाग ने इस योजना को जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करने की पूरी तैयारी कर ली है। विभाग के अपर निदेशक (प्रसार) आर.के. सिंह के अनुसार, किसानों को हर साल 4,000 रुपये का आर्थिक अनुदान मिलेगा, जबकि कृषि सखियों को 5,000 रुपये मासिक वेतन प्रदान किया जाएगा। इस योजना से 2.35 लाख किसान लाभान्वित होंगे और स्थायी खेती-Sustainable Farming की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है।
कृषि सखी योजना: ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी से बदलाव की ओर
इस योजना की सबसे खास बात यह है कि इसमें स्वंय सहायता समूह की महिलाओं को ‘कृषि सखी’ के रूप में चयनित किया जाएगा। हर जिले में निगरानी समिति द्वारा इनका चयन किया जाएगा। कुछ जिलों में यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है। यह पहल महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण रोजगार के क्षेत्र में भी सकारात्मक प्रभाव डालेगी।
हर क्लस्टर में दो कृषि सखियों की नियुक्ति की जाएगी, जो किसानों को प्राकृतिक खेती के तौर-तरीकों की जानकारी देंगी। इन क्लस्टरों का चयन प्रदेश की नदियों के किनारे बसे गांवों में किया गया है, जो कुल 1886 हैं। हर क्लस्टर में 50 हेक्टेयर भूमि को शामिल किया गया है, जिसमें कम से कम 125 किसान खेती करेंगे। यह मॉडल सामूहिक खेती और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।
प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग और बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर (BRC)
प्राकृतिक खेती की प्रक्रिया में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी सहयोग अनिवार्य है। इसके लिए हर कृषि विज्ञान केंद्र से दो वैज्ञानिक और एक तकनीशियन को नामित किया जाएगा जो कृषि सखियों और किसानों को व्यावहारिक प्रशिक्षण देंगे। इससे खेती का स्तर वैज्ञानिकता और परंपरा के बीच संतुलन बनाते हुए ऊंचा उठेगा।
इसके अतिरिक्त, हर जिले में दो बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर (BRC) स्थापित किए जाएंगे, जिन पर प्रत्येक के लिए 1 लाख रुपये का खर्च प्रस्तावित है। ये केंद्र किसानों को जैविक खाद, बीज और प्राकृतिक कीटनाशकों की उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे, जिससे प्राकृतिक खेती की पूरी श्रृंखला स्थानीय स्तर पर ही उपलब्ध हो सकेगी।