VVIP Cars: ये गाड़ियां चलती हैं बिना नंबर प्लेट! जानिए किन पर लगता है तीर का निशान और क्यों

भारत में वाहन नंबर प्लेट का इतिहास 1914 से शुरू होकर आज तक कई बदलावों से गुजरा है। राष्ट्रपति, राज्यपाल और सैन्य वाहनों के लिए विशेष रजिस्ट्रेशन नियम होते हैं, जो आम जनता की गाड़ियों से अलग होते हैं। शाही रियासतों की गाड़ियों से लेकर हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट तक का सफर भारतीय ऑटोमोबाइल इतिहास को गौरवशाली बनाता है।

By Pankaj Singh
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VVIP Cars: ये गाड़ियां चलती हैं बिना नंबर प्लेट! जानिए किन पर लगता है तीर का निशान और क्यों
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भारत में वाहन के लिए नंबर प्लेट और रोड ट्रांसपोर्ट ऑफिस (आरटीओ) में रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है, लेकिन कुछ विशेष श्रेणियों की गाड़ियों को इससे छूट मिली हुई है। इन गाड़ियों में सबसे प्रमुख हैं राष्ट्रपति और राज्यपालों के वाहन, जो आम नियमों के दायरे में नहीं आते। इन गाड़ियों पर किसी भी प्रकार की सामान्य नंबर प्लेट नहीं होती, बल्कि इनमें भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ अंकित होता है।

राष्ट्रपति की गाड़ी मोटर व्हीकल एक्ट, 1988 के दायरे में नहीं आती और उसका रजिस्ट्रेशन आरटीओ में नहीं होता। इन वाहनों की देखरेख राष्ट्रपति भवन के प्रशासनिक सिस्टम द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति और राज्यपालों की ये गाड़ियां एक विशेष सरकारी प्रोटोकॉल के अंतर्गत संचालित होती हैं और इनका रखरखाव और सुरक्षा राष्ट्रपति सचिवालय या राज्यपाल निवास द्वारा की जाती है।

भारतीय सेना की गाड़ियों का अनूठा रजिस्ट्रेशन सिस्टम

सैन्य वाहनों की पहचान भी आम गाड़ियों से अलग होती है। ये गाड़ियां RTO के बजाय रक्षा मंत्रालय के इंटरनल रजिस्ट्रेशन सिस्टम से रजिस्टर्ड होती हैं। इनकी नंबर प्लेट पर एक विशेष चिह्न होता है—ऊर्ध्व तीर (↑)। इसके साथ ही गाड़ी के रजिस्ट्रेशन वर्ष को दर्शाने वाले दो अंक, उसके बाद कुछ अक्षर और संख्याएं होती हैं। उदाहरण के तौर पर: ↑ 25 B 123456, जहां “25” वर्ष 2025 को दर्शाता है।

इनकी नंबर प्लेट काले बैकग्राउंड पर सफेद अक्षरों में होती है, जो कि इन्हें सामान्य नागरिक वाहनों से अलग बनाती है। अगर कोई सैन्य वाहन आम नागरिक को ट्रांसफर किया जाता है, तो उसे RTO में रजिस्टर्ड कराना और सामान्य नंबर प्लेट लगाना अनिवार्य हो जाता है।

ब्रिटिश काल से शुरू हुआ भारत का नंबर प्लेट सिस्टम

भारत में नंबर प्लेट सिस्टम की शुरुआत ब्रिटिश राज के दौरान 1914 में “भारतीय मोटर व्हीकल एक्ट” लागू होने के साथ हुई थी। इस एक्ट के तहत गाड़ियों का पंजीकरण और ड्राइविंग लाइसेंस अनिवार्य किया गया। इससे पहले रियासतों की गाड़ियों पर केवल राज्य का प्रतीक या नाम लिखा होता था। जयपुर, ग्वालियर, हैदराबाद और बड़ौदा जैसी रियासतों की गाड़ियों पर क्रमशः ‘JP’, ‘GWL’, ‘HYD’ और ‘BRD’ जैसे विशेष कोड होते थे।

राजसी गाड़ियों की भव्य पहचान

स्वतंत्रता से पूर्व, राजाओं और नवाबों की गाड़ियां बिना किसी सरकारी रजिस्ट्रेशन के चलती थीं। इन गाड़ियों पर अक्सर शाही मुहर, प्रतीक या राजा का नाम अंकित होता था। जयपुर के महाराजा की Bugatti कार पर विशेष राजकीय मोनोग्राम होता था और हैदराबाद के नवाब की Rolls-Royce पर ‘HYD’ अंकित होता था। पटियाला के महाराजा के पास 44 Rolls-Royce कारें थीं, जिन पर उनके राज्य का विशेष चिन्ह लगा होता था।

स्वतंत्रता के बाद सभी गाड़ियों को सामान्य नागरिक नियमों के अंतर्गत लाना अनिवार्य कर दिया गया।

भारत की पहली रजिस्टर्ड गाड़ी का इतिहास

भारत में सबसे पहली बार किसी गाड़ी को ‘MH-01’ नंबर दिया गया था, जो मुंबई (तब बंबई) में रजिस्टर्ड हुई थी। ऐसा माना जाता है कि यह गाड़ी या तो किसी ब्रिटिश अफसर की थी या फिर किसी भारतीय व्यापारी की, लेकिन इसका औपचारिक रजिस्ट्रेशन मोटर व्हीकल एक्ट के तहत हुआ था।

नंबर प्लेट नियमों में समय के साथ हुआ बदलाव

1914 में मोटर व्हीकल एक्ट लागू होने के बाद भारत में गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हुई। 1939 में एक्ट में बदलाव करके रजिस्ट्रेशन नंबर और नियमों को स्पष्ट किया गया। 1989 में पूरे देश में नंबर प्लेट डिजाइन को एक समान करने का निर्णय लिया गया। अंततः 2019 में हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट (HSRP) अनिवार्य कर दी गई, जिससे फर्जी नंबर प्लेट और छेड़छाड़ की घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।

दुनिया में नंबर प्लेट की शुरुआत कहाँ हुई?

दुनिया में सबसे पहले नंबर प्लेट लगाने की शुरुआत 1893 में फ्रांस में हुई थी। बढ़ते सड़क हादसों और गाड़ियों की बढ़ती संख्या के चलते यह व्यवस्था जरूरी मानी गई। इसके बाद ब्रिटेन में 1903 और जर्मनी में 1906 में इस व्यवस्था को लागू किया गया। अमेरिका में भी 20वीं सदी की शुरुआत में नंबर प्लेट अनिवार्य कर दी गई।

भारत में इस प्रणाली की शुरुआत अंग्रेजों ने की, लेकिन इससे पहले भी 18वीं सदी में शाही राज्यों की गाड़ियों पर पहचान के लिए प्रतीक, नाम या राज्य की मुहर अंकित की जाती थी, जो आज की नंबर प्लेट की तरह ही पहचान का माध्यम थी।

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Pankaj Singh

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