
सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty) को निलंबित करने के बाद अब राजस्थान के बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जिलों के लिए एक नई उम्मीद जगी है। श्रीनगर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने सिंधु नदी (Indus River) समेत अन्य नदियों पर नियंत्रण को लेकर सख्त रुख अपनाया है। इसका सीधा फायदा राजस्थान को मिल सकता है, जहां अब तक पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ता रहा है।
सिंधु जल समझौता और भारत का हक
सिंधु जल समझौते के तहत भारत को रावी, व्यास और सतलुज नदियों (Ravi, Beas, Sutlej Rivers) का पानी मिला है, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चेनाब नदियां दी गई हैं। भारत को अपने हिस्से का पानी पूरी तरह से उपयोग करने का अधिकार है, लेकिन अब तक हम शत प्रतिशत पानी का उपयोग नहीं कर पा रहे थे। हर साल बरसात के मौसम में बांधों के भरने के समय अतिरिक्त पानी हरिके बैराज (Harike Barrage) से होकर पाकिस्तान में चला जाता है, जिससे पाकिस्तान में सैकड़ों एकड़ भूमि पर खेती होती है।
बीकानेर कैनाल और हुसैनीवाला हेडवर्क्स का इतिहास
आजादी से पहले बीकानेर कैनाल (Bikaner Canal) का निर्माण महाराजा गंगासिंह ने करवाया था। यह कैनाल हुसैनीवाला हेडवर्क्स (Hussainiwala Headworks) से निकलती थी। वर्तमान में, जून से अगस्त के बीच औसतन 1.30 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी हुसैनीवाला के रास्ते पाकिस्तान चला जाता है। अगर इस पानी को भारत में रोक कर राजस्थान की नहरों को दिया जाए, तो बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसे जिलों में असिंचित भूमि भी लहलहा सकती है।
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बटाला से भी पाकिस्तान जाता है पानी
सिर्फ हुसैनीवाला ही नहीं, बल्कि पंजाब की बटाला तहसील के नारोवाल गांव से भी सीपेज के माध्यम से लगभग 1000 क्यूसेक पानी पाकिस्तान में चला जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस पानी को रोक कर पंजाब और राजस्थान दोनों राज्यों में कृषि कार्य को बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे न केवल पाकिस्तान की खेती पर असर पड़ेगा, बल्कि राजस्थान में फरवरी-मार्च के महीनों में पानी की किल्लत भी समाप्त हो सकती है।
बारहमासी नदियों का फर्क
सिंधु जल समझौते के अनुसार पाकिस्तान को चेनाब, झेलम और सिंधु नदियों का पानी मिला है, जो सालभर बारहमासी रहती हैं। जबकि भारत को मिली रावी और व्यास नदियां सर्दियों में लगभग सूख जाती हैं, केवल सतलुज नदी ही बारहमासी है। इस असमानता के चलते भारत को अपने हिस्से के पानी के अधिकतम उपयोग की आवश्यकता महसूस हो रही है।
डैम और डायवर्जन से बदल सकता है नक्शा
विशेषज्ञों का मानना है कि चेनाब, झेलम और सिंधु नदियों से ढाई से तीन सौ फीट ऊंचाई पर पानी का डायवर्जन कर डैम जैसा सिस्टम बनाकर रावी, व्यास और सतलुज नदियों में भेजा जा सकता है। सिंधु जल समझौते के निलंबन के बाद भारत के पास यह विकल्प खुल गया है। यदि सरकार इस दिशा में कदम उठाती है, तो राजस्थान के रेगिस्तानी जिलों में हरियाली लाना अब केवल सपना नहीं रहेगा।
नहरी सिस्टम को पुनर्जीवित करने की तैयारी
नहरी सिस्टम के विशेषज्ञ एडवोकेट सुभाष सहगल के अनुसार, हरिके बैराज और हुसैनीवाला हेडवर्क्स पर नए सिरे से काम कर, अतिरिक्त पानी को राजस्थान की नहरों तक पहुँचाया जा सकता है। इसके लिए आधुनिक तकनीक और रणनीतिक प्लानिंग की आवश्यकता होगी। यदि यह योजना सफल होती है तो यह न केवल कृषि उत्पादन को बढ़ाएगी, बल्कि हजारों किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत करेगी।
राजस्थान के जल संकट पर पड़ेगा सीधा असर
आज जब राजस्थान के कई जिले जल संकट (Water Crisis) के मुहाने पर खड़े हैं, वहां सिंधु नदी के पानी का एक नया रास्ता खुलना राज्य के भविष्य के लिए क्रांतिकारी बदलाव साबित हो सकता है। खासकर बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसे जिलों में, जहां सालाना वर्षा बेहद कम होती है, वहां स्थायी जल आपूर्ति से कृषि, उद्योग और जीवनस्तर तीनों में अभूतपूर्व सुधार संभव है।