
भारत में शिक्षा व्यवस्था का आकार और विविधता इतना बड़ा है कि पेरेंट्स के लिए सही स्कूल चुनना आसान नहीं होता, खासकर जब विकल्प केंद्रीय विद्यालय-KVS और दिल्ली पब्लिक स्कूल-DPS जैसे प्रतिष्ठित नाम हों। KVS एक सरकारी स्कूल नेटवर्क है जो शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आता है, जबकि DPS एक निजी संस्था है जिसे दिल्ली पब्लिक स्कूल सोसाइटी द्वारा संचालित किया जाता है। दोनों ही स्कूलों का उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना है, लेकिन इनकी नीति, फीस, एडमिशन प्रक्रिया और सुविधाएं एक-दूसरे से काफी अलग हैं। यही वजह है कि पेरेंट्स के लिए यह तय करना चुनौती बन जाता है कि उनके बच्चे के लिए कौन-सा स्कूल बेहतर रहेगा।
KVS और DPS की एडमिशन प्रक्रिया में मूलभूत अंतर
जब बात आती है एडमिशन की, तो केंद्रीय विद्यालय-KVS में प्रवेश प्रणाली पूरी तरह पारदर्शी और प्राथमिकता आधारित होती है। कक्षा 1 में एडमिशन के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और लॉटरी सिस्टम अपनाया जाता है, जबकि कक्षा 2 से 8 तक ऑफलाइन आवेदन होता है और खाली सीटों के आधार पर प्राथमिकता दी जाती है। केंद्रीय कर्मचारियों, सेना और अर्धसैनिक बलों में कार्यरत अभिभावकों को पहली प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा RTE कानून के तहत EWS, SC/ST और OBC वर्ग को 25% आरक्षण भी मिलता है।
वहीं दूसरी तरफ, DPS में एडमिशन प्रक्रिया स्कूल-टू-स्कूल अलग हो सकती है। कुछ DPS शाखाएं इंटरव्यू पर भरोसा करती हैं, जबकि कुछ मेरिट और टेस्ट के आधार पर बच्चों को चुनती हैं। इसमें कोई सरकारी प्राथमिकता नहीं होती, लेकिन भाई-बहनों की पढ़ाई, डोनेशन या कुछ मामलों में मैनेजमेंट कोटे के आधार पर प्रवेश मिल सकता है। ये प्रक्रिया अपेक्षाकृत कम पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक होती है।
KVS vs DPS: पढ़ाई की गुणवत्ता और सुविधाओं में अंतर
KVS की सबसे बड़ी ताकत है इसकी कम फीस और एकसमान शिक्षा नीति। NCERT की किताबें, CBSE सिलेबस और द्विभाषी शिक्षा प्रणाली इसे एक स्थिर और भरोसेमंद विकल्प बनाती हैं। इसके अलावा, केंद्रीय कर्मचारियों के ट्रांसफर पर बच्चे को आसानी से किसी और KVS में शिफ्ट किया जा सकता है। स्काउट्स, स्पोर्ट्स और सांस्कृतिक गतिविधियों पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित होता है।
वहीं, DPS में आधुनिक सुविधाएं जैसे स्मार्ट क्लास, साइंस लैब्स, डिजिटल लाइब्रेरी और इंटरनेशनल एक्सपोजर मिलते हैं। DPS अंग्रेजी भाषा और कॉन्फिडेंस बिल्डिंग पर विशेष फोकस करता है, जो ग्लोबल स्टैंडर्ड की तैयारी के लिए जरूरी है। DPS में स्टूडेंट-टीचर रेशियो भी बेहतर होता है, जिससे बच्चों को पर्सनल गाइडेंस मिलती है। यही वजह है कि कई DPS स्कूल आईआईटी, NEET और विदेश पढ़ाई की तैयारी के लिए आदर्श माने जाते हैं।
क्या हैं इन स्कूलों के नुकसान?
KVS में सबसे बड़ा चैलेंज है सीटों की कमी। चूंकि यह सरकारी कर्मचारियों को प्राथमिकता देता है, इसलिए आम नागरिकों को एडमिशन मिलना कठिन होता है। इसके अलावा, हर KVS में आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होता और टीचिंग स्टाफ में नियमित तथा कॉन्ट्रैक्ट टीचर्स के कारण क्वालिटी का अंतर हो सकता है। वहीं लॉटरी सिस्टम के कारण एडमिशन की अनिश्चितता भी एक बड़ी चिंता है।
DPS की बात करें तो इसकी फीस स्ट्रक्चर मिडल क्लास पेरेंट्स के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है। इसके अलावा, हर DPS की क्वालिटी एक जैसी नहीं होती। दिल्ली जैसे शहरों में DPS का स्तर काफी ऊंचा होता है, लेकिन छोटे शहरों की ब्रांच उतनी मजबूत नहीं हो सकती। प्राइवेट स्कूल होने के कारण ट्रांसफर के समय ब्रांच बदलने में दिक्कत हो सकती है। साथ ही, हिंदी भाषा पर कम फोकस होने के कारण सरकारी नौकरियों की तैयारी में यह नुकसानदायक हो सकता है।
किस स्कूल को चुनें: KVS या DPS?
अगर आप एक सरकारी कर्मचारी हैं या सीमित बजट में अपने बच्चे को गुणवत्तापूर्ण और स्थायी शिक्षा देना चाहते हैं, तो KVS आपके लिए बेहतर विकल्प है। साथ ही, ट्रांसफरेबल नौकरी में होने पर KVS की देशभर में मौजूदगी बहुत फायदेमंद साबित होती है।
दूसरी ओर, अगर आप ज्यादा फीस देने में सक्षम हैं और चाहते हैं कि आपके बच्चे को अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं, एक्सपोजर और अंग्रेजी में फ्लुएंसी मिले, तो DPS आपके लिए उपयुक्त रहेगा। खासकर अगर आपकी प्राथमिकता आईआईटी, NEET या विदेश पढ़ाई जैसी प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाएं हैं।