
Islamic Banking and Finance दुनिया भर में एक तेज़ी से उभरता हुआ सेक्टर बन चुका है, जो पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम से बिल्कुल अलग है। आमतौर पर बैंक अपने ग्राहकों को जमा पर ब्याज देते हैं और लोन पर ब्याज वसूलते हैं, लेकिन Islamic Banking इस सिद्धांत को पूरी तरह खारिज करता है। इस्लामिक फाइनेंस, शरिया कानून पर आधारित होता है, जिसमें ब्याज यानी रिबा को हराम माना गया है। इसलिए इस्लामिक बैंकिंग पूरी तरह ब्याज-मुक्त व्यवस्था पर काम करती है।
कितनी बड़ी है Islamic Finance Industry
आज के समय में Islamic Finance कोई सीमित दायरे की अवधारणा नहीं रह गई है। यह एक ग्लोबल इंडस्ट्री बन चुकी है जिसकी कुल संपत्ति 2.7 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच चुकी है। 2023 की स्टेट ऑफ ग्लोबल इस्लामिक इकोनॉमी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2026 तक शरिया-अनुपालन संपत्तियों का आकार 5.95 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। दुनिया भर में 1,650 से अधिक इस्लामिक बैंक और फाइनेंस इंस्टीट्यूशन्स सक्रिय हैं, जिनकी पकड़ मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया के मुस्लिम देशों तक सीमित नहीं है बल्कि यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका और एशिया तक फैली हुई है।
कैसे काम करता है इस्लामिक बैंकिंग मॉडल
Islamic Banking का सबसे अनोखा पहलू यह है कि यह न तो ब्याज लेता है और न ही देता है। ऐसे में सवाल उठता है कि बैंक मुनाफा कैसे कमाते हैं? इसका जवाब Islamic Finance के मॉडल में छिपा है। ये बैंक कर्ज देने के बजाय उस वस्तु या प्रॉपर्टी को खरीदते हैं जिसकी ग्राहक को ज़रूरत होती है और फिर उसे ग्राहक को किश्तों पर बेचते हैं। इस प्रक्रिया में ब्याज नहीं लिया जाता बल्कि वास्तविक मुनाफा कमाया जाता है।
इजारा या लीजिंग मॉडल
Islamic Banking में एक प्रमुख तरीका है “इजारा” यानी लीजिंग। इसमें यदि ग्राहक को कार खरीदनी है, तो बैंक खुद कार खरीदता है और फिर उसे ग्राहक को लीज पर देता है। लीज की अवधि पूरी होने के बाद ग्राहक उस वस्तु का मालिक बन जाता है। इस तरह बैंक बिना ब्याज लिए वस्तु पर मुनाफा कमाता है, जो शरिया के अनुसार वैध है।
किन सेक्टरों में Islamic Bank लोन नहीं देते
Islamic Bank केवल उन्हीं क्षेत्रों में निवेश करते हैं जो शरिया के अनुसार वैध माने जाते हैं। शराब, जुआ, पोर्क इंडस्ट्री, हथियार निर्माण, और दूसरे हराम कारोबारों के लिए Islamic Finance में कोई जगह नहीं है। इसके विपरीत, ये बैंक रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy, रियल एस्टेट, हेल्थकेयर और एजुकेशन जैसे सेक्टरों में निवेश को प्राथमिकता देते हैं।
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Islamic Bank के फायदे और विस्तार की वजह
Islamic Banking एक नैतिक बैंकिंग व्यवस्था के रूप में सामने आ रही है। पारंपरिक बैंकों की तुलना में यह मॉडल वित्तीय असमानता को कम करता है और समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाता है। इसमें जोखिम और मुनाफा दोनों को साझेदारी के रूप में देखा जाता है, जिससे ग्राहक और बैंक दोनों की जिम्मेदारी बनती है।
दुनिया में Islamic Finance का विस्तार
Islamic Finance अब सिर्फ मुस्लिम बहुल देशों तक सीमित नहीं है। ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों में भी इस्लामिक बैंकिंग तेजी से लोकप्रिय हो रही है। कई बड़े गैर-मुस्लिम निवेशक भी इसे अपनाने लगे हैं क्योंकि यह एक वैकल्पिक और स्थायी वित्तीय मॉडल प्रदान करता है।
पारंपरिक बैंकिंग से कितना अलग है Islamic Banking
जहां पारंपरिक बैंकिंग पूरी तरह से ब्याज और उधारी पर आधारित है, वहीं Islamic Banking में संपत्ति आधारित ट्रांजैक्शन होते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि यहां बैंक केवल पैसे का लेन-देन नहीं करते, बल्कि वास्तविक प्रॉपर्टी या उत्पादों में निवेश करते हैं। Islamic Finance में “Risk Sharing” और “Profit and Loss Sharing” जैसे सिद्धांतों का पालन किया जाता है, जो इसे पारंपरिक मॉडल से बिल्कुल अलग बनाता है।