
सोने-Gold की कीमतों में बीते कुछ महीनों से लगातार तेजी देखी जा रही है, और इसका सबसे बड़ा कारण है ग्लोबल वोलैटिलिटी और अमेरिका-चीन के बीच बढ़ता ट्रेड वॉर. जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विभिन्न देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा की, तब से सोने की मांग में जबरदस्त उछाल आया. हाल ही में ट्रंप ने चीन को छोड़कर अन्य देशों पर टैरिफ लगाने के फैसले को 90 दिनों के लिए टाल दिया, इसके बावजूद सोने के दामों में तेजी जारी है. इससे यह साफ है कि सोने में निवेश को लेकर लोगों की दिलचस्पी लगातार बढ़ रही है।
MCX पर सोने ने तोड़ा रिकॉर्ड
शुक्रवार को MCX पर सोने की कीमत ने नया रिकॉर्ड बनाया. दिल्ली में 22 कैरेट सोना 85,760 रुपए और 24 कैरेट सोना 93,540 रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंच गया. यह बढ़ोतरी महज आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि निवेशकों की मानसिकता को भी दर्शाती है. जब शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव बना रहता है, तब सोना एक सुरक्षित निवेश विकल्प के तौर पर उभरता है. मौजूदा वैश्विक हालातों में निवेशकों का भरोसा सोने पर अधिक है, और यही कारण है कि वे अपना पैसा शेयर बाजार की बजाय Gold में लगा रहे हैं.
क्या सोने की ये तेजी बनी रहेगी?
अब सबसे अहम सवाल है—क्या सोने की कीमतों में ये तेजी बनी रहेगी या आने वाले समय में गिरावट देखने को मिलेगी? मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ जानकार मानते हैं कि सोने की कीमत 1 लाख रुपए प्रति 10 ग्राम तक पहुंच सकती है. वहीं, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इसमें करीब 40 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. यानी बाजार को लेकर राय बंटी हुई है, लेकिन अनिश्चितता का माहौल अभी भी सोने के पक्ष में काम कर रहा है.
क्या Gold वाकई ₹1 लाख तक जाएगा?
सोने की लगातार बढ़ती कीमतों ने इस सवाल को जन्म दिया है कि क्या यह वाकई ₹1 लाख प्रति 10 ग्राम तक जा सकता है? विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लोबल अनिश्चितता, केंद्रीय बैंकों द्वारा भारी मात्रा में Gold की खरीदारी, और ट्रंप की टैरिफ नीतियों जैसी कई वजहों से इसकी मांग में तेजी आई है. इन कारणों ने निवेशकों को सोने की ओर आकर्षित किया है, और फिलहाल इसमें निवेश करना सुरक्षित विकल्प माना जा रहा है.
दामों की कोई सीमा नहीं, लेकिन बढ़त सीमित
हालांकि सोने की कीमतों की कोई तय सीमा नहीं होती, लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए इसकी कीमत में और उछाल आने की संभावना कम मानी जा रही है. इसकी वजह यह है कि ज्यादातर पॉजिटिव फैक्टर्स पहले ही बाजार में दिखाई दे चुके हैं. अब कीमतें बढ़ाने के लिए कोई बड़ा ग्लोबल कारण नज़र नहीं आ रहा. इसलिए निवेशकों को जल्दबाज़ी की बजाय समझदारी से फैसले लेने की सलाह दी जा रही है.