
Private Schools Fee Hike जैसे विषय पर हर शैक्षणिक सत्र की शुरुआत से पहले चर्चा होना आम बात हो गई है। अखबारों की सुर्खियों से लेकर सोशल मीडिया पोस्ट्स तक, पेरेंट्स का विरोध, प्रदर्शन और प्रशासन से शिकायतें साफ़ दर्शाती हैं कि यह मुद्दा हर वर्ष लोगों की चिंता का विषय बन चुका है। भारत के विभिन्न राज्यों में प्राइवेट स्कूलों की फीस में बढ़ोतरी को लेकर अलग-अलग नियम हैं, लेकिन फिर भी सवाल यही है कि क्या स्कूल अपनी मर्जी से फीस बढ़ा सकते हैं?
क्यों होती है फीस में बढ़ोतरी?
प्राइवेट स्कूलों को ओपरेशनल कॉस्ट, स्टाफ सैलरी, इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और एजुकेशन क्वालिटी को बनाए रखने के लिए रेगुलर इनकम की आवश्यकता होती है। ऐसे में फीस बढ़ाना स्कूल प्रबंधन की मजबूरी बन जाती है। लेकिन क्या यह बढ़ोतरी बिना किसी निगरानी या नियम के की जाती है? नहीं। भारत में प्रत्येक राज्य ने अपने-अपने स्तर पर नियम बनाए हैं ताकि पैरेंट्स को अनावश्यक आर्थिक बोझ से बचाया जा सके।
कौन करता है फीस बढ़ोतरी का फैसला?
फीस बढ़ाने का शुरुआती प्रस्ताव स्कूल मैनेजमेंट द्वारा तैयार किया जाता है। वे अपने वित्तीय आँकड़ों, भविष्य की ज़रूरतों और खर्चों का आकलन करते हैं। इसके बाद यह प्रस्ताव पैरेंट्स टीचर एसोसिएशन (PTA) या राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियामक तंत्र के सामने रखा जाता है। कई राज्यों में स्कूलों को बढ़ोतरी से पहले PTA से सहमति लेनी होती है, तो कुछ जगहों पर सरकारी अनुमति आवश्यक होती है।
अलग-अलग राज्यों में क्या हैं नियम?
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में स्कूलों को सालाना अधिकतम 9.9% तक फीस बढ़ाने की अनुमति है। इसमें 5% डायरेक्ट बढ़ोतरी और बाकी कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स-CPI के आधार पर होती है। इससे ज़्यादा बढ़ोतरी नियमों के विरुद्ध मानी जाती है। फीस रेगुलेशन एक्ट, 2018 इसे नियंत्रित करता है।
दिल्ली
दिल्ली में स्थित प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी के लिए शिक्षा निदेशालय (DoE) की मंजूरी सिर्फ उन स्कूलों के लिए अनिवार्य है जो सरकारी जमीन पर बने हैं। ऐसे सिर्फ 355 स्कूल हैं, जबकि बाकी लगभग 1,300 स्कूलों पर यह नियम लागू नहीं होता। इसका मतलब है कि 80% स्कूल बिना किसी सरकारी निगरानी के फीस बढ़ा सकते हैं।
हरियाणा
हरियाणा सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि कोई भी स्कूल महंगाई दर (CPI) से अधिकतम 5% ज़्यादा फीस ही बढ़ा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर CPI 3% है, तो स्कूल 8% तक ही फीस बढ़ा सकते हैं।
बिहार
बिहार में 2019 से लागू एक कानून के तहत, प्राइवेट स्कूल पिछली साल की फीस के 7% से अधिक नहीं बढ़ा सकते। इस नियम को पटना हाई कोर्ट ने भी संवैधानिक रूप से वैध ठहराया है। राज्य में फीस बढ़ोतरी की समीक्षा के लिए फीस रेगुलेटरी कमिटी गठित की गई है।
अभिभावकों की भूमिका और अधिकार
अभिभावकों के पास भी अपने हक की आवाज़ उठाने का पूरा अधिकार है। PTA के ज़रिए या सीधे स्कूल से संपर्क कर वे फीस बढ़ोतरी के कारणों की जानकारी मांग सकते हैं। कई बार यदि उन्हें वृद्धि अनुचित लगे, तो वे कानूनी सहारा भी ले सकते हैं। कुछ राज्यों में PTA की सहमति के बिना फीस बढ़ाना नियमों के विरुद्ध माना जाता है।