
Supreme Court on Eviction को लेकर हाल ही में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का फैसला बुजुर्ग माता-पिता और उनके बच्चों के बीच रिश्तों को लेकर एक अहम कानूनी और सामाजिक संदेश देता है। आधुनिक जीवनशैली और बढ़ती व्यक्तिगत स्वतंत्रता के चलते संयुक्त परिवारों की जगह अब सिंगल फैमिली का चलन बढ़ रहा है। इसके साथ ही बुजुर्ग माता-पिता के लिए अपने ही घर में सम्मान और देखभाल पाने की चुनौती भी बढ़ी है।
हाल ही में एक वरिष्ठ दंपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हर मामले में बच्चों को घर से बेदखल नहीं किया जा सकता, भले ही माता-पिता ने उनके खिलाफ दुर्व्यवहार का आरोप लगाया हो।
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वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 का हवाला
यह मामला सीधे तौर पर Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 (वरिष्ठ नागरिक अधिनियम) से जुड़ा है। इस कानून के तहत बुजुर्ग माता-पिता को अपने बच्चों से भरण-पोषण पाने का कानूनी अधिकार प्राप्त है। हालांकि, इस कानून में सीधे तौर पर यह अधिकार नहीं दिया गया है कि वे अपने बच्चों को घर से निकाल सकें।
इस केस में वरिष्ठ दंपति ने अपने बेटे को घर से बेदखल करने की मांग करते हुए यह तर्क दिया था कि वह उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क – बेदखली के लिए ठोस आधार जरूरी
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि केवल आरोपों के आधार पर बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता। 2019 में ट्रिब्यूनल ने आंशिक रूप से दंपति को राहत देते हुए बेटे को घर के कुछ हिस्सों से दूर रहने और केवल दुकान व कमरे तक सीमित रहने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक बेटे के दुर्व्यवहार का कोई नया, ठोस और प्रमाणिक सबूत सामने नहीं आता, तब तक उसे घर से पूरी तरह बेदखल करना उचित नहीं होगा।
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कानून की धारा 23: शर्तों के उल्लंघन पर बेदखली संभव
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में दिए गए निर्णयों में यह साफ किया है कि यदि बुजुर्ग व्यक्ति अपनी संपत्ति किसी को इस शर्त पर देता है कि वह उनकी देखभाल करेगा, और वह शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो उस स्थिति में संपत्ति का ट्रांसफर अमान्य माना जा सकता है।
Section 23 के तहत, बुजुर्ग व्यक्ति ट्रिब्यूनल में अपील करके अपनी संपत्ति वापस मांग सकता है और यदि आवश्यक हो, तो संबंधित व्यक्ति को घर से निकालने का आदेश भी मिल सकता है।
ट्रिब्यूनल का अधिकार और भूमिका
Supreme Court ने यह भी कहा कि Senior Citizens Act के तहत गठित ट्रिब्यूनल को यह अधिकार है कि वह सभी पक्षों की जांच करके निष्पक्ष रूप से फैसला दे। यदि यह साबित होता है कि बुजुर्गों की सुरक्षा या देखभाल के लिए बच्चों को घर से हटाना आवश्यक है, तो ट्रिब्यूनल यह निर्णय ले सकता है।
2020 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि यदि कोई बुजुर्ग अपने बच्चे को संपत्ति ट्रांसफर करता है तो वह संपत्ति उस शर्त के साथ आती है कि नए मालिक को भी बुजुर्ग की देखभाल करनी होगी। यदि ऐसा नहीं होता, तो ट्रिब्यूनल हस्तक्षेप कर सकता है।
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विशेषज्ञों की राय: जरूरी है साक्ष्य और न्यायसंगत प्रक्रिया
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह बात साफ कर दी है कि Senior Citizens Act बुजुर्गों को भरण-पोषण का हक तो देता है, लेकिन बेदखली का आदेश केवल तभी संभव है जब इसके लिए पर्याप्त साक्ष्य और न्यायसंगत आधार हो।
यह कानून बुजुर्गों को सुरक्षा देता है, लेकिन बिना उचित प्रक्रिया के इसका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। साथ ही यह फैसला सामाजिक रूप से भी एक सशक्त संदेश देता है कि परिवार में रिश्तों को केवल कानून के आधार पर नहीं, बल्कि आपसी समझ और सम्मान के आधार पर चलाया जाना चाहिए।
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