
राजस्थान में Parshuram Jayanti 2025 को लेकर अवकाश की तिथि पर नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार द्वारा 29 अप्रैल 2025 को परशुराम जयंती के उपलक्ष्य में राजकीय अवकाश घोषित किया गया है, लेकिन प्रदेश के कई ब्राह्मण संगठनों और धार्मिक संस्थाओं ने इस तिथि को बदलने की मांग उठाई है। इनका कहना है कि परशुराम जयंती वास्तव में 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के दिन मनाई जानी चाहिए, जो कि पंचांग अनुसार सूर्योदय की मान्यता पर आधारित है।
तिथि बदलने की मांग के पीछे क्या है तर्क
Parshuram Sena और Vipra Mahasabha जैसे प्रमुख संगठनों ने इस संबंध में राजस्थान के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा है। परशुराम सेना के अध्यक्ष अनिल चतुर्वेदी का कहना है कि सरकारी कैलेंडर में घोषित अवकाश 29 अप्रैल की तिथि ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टिकोण से सटीक नहीं है। 30 अप्रैल 2025 को अक्षय तृतीया है, और यही दिन भगवान परशुराम के जन्म का वास्तविक दिन माना जाता है। ऐसे में जन भावनाओं का सम्मान करते हुए 30 अप्रैल को अवकाश घोषित किया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी जानकारी दी कि 30 अप्रैल को जयपुर स्थित बिरला ऑडिटोरियम में भगवान परशुराम की भव्य पूजा और अनुष्ठान का आयोजन किया जाएगा। इस आयोजन में प्रदेशभर के 20 से अधिक ब्राह्मण संगठन भाग लेंगे, जिससे यह साफ संकेत मिल रहा है कि समाज के भीतर यह मांग कितनी व्यापक है।
कौन थे भगवान परशुराम
भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। वे अत्यंत तेजस्वी, पराक्रमी और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित योद्धा माने जाते हैं। उन्होंने धरती से अन्याय और अधर्म के अंत के लिए कई बार क्षत्रियों का संहार किया। परशुराम एकमात्र ऐसे अवतार हैं जो चिरंजीवी माने जाते हैं और कालांतर में कल्कि अवतार के गुरु के रूप में भी उनका उल्लेख मिलता है। उनका जन्म विशेष रूप से धार्मिक मान्यताओं और कर्मकांडों से जुड़ा हुआ है, और इसी कारण उनकी जयंती का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है।
राजस्थान में इस दिन विशेष पूजा-पाठ, व्रत, कथा, और सामूहिक आयोजन किए जाते हैं। सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और बैंक जैसे संस्थानों में इस दिन अवकाश रहता है, जिससे लोग धार्मिक अनुष्ठानों में भाग ले सकें।
संगठनों की भावनाएं और प्रशासन की प्रतिक्रिया
जहां एक ओर सामाजिक संगठन 30 अप्रैल को अवकाश घोषित करने की मांग को लेकर सक्रिय हैं, वहीं अब तक राज्य सरकार की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि, यह मुद्दा अब धार्मिक भावना और सरकारी निर्णयों के टकराव का प्रतीक बनता जा रहा है। संगठनों का कहना है कि धार्मिक तिथियों को पंचांग के अनुसार मान्यता दी जानी चाहिए, न कि प्रशासनिक सहूलियत के अनुसार।