क्या नाना-नानी की संपत्ति में होता है नाती-नातिन का हिस्सा? जानिए कोर्ट क्या कहता है इस पर

नाना-नानी की प्रॉपर्टी में नाती-नातिन का हक होता है या नहीं, यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है। इस लेख में हमने हिंदू लॉ के तहत संपत्ति के प्रकार और वसीयत की भूमिका को समझाया है। जानिए कैसे आपकी मां की स्थिति और संपत्ति की प्रकृति आपके हक को तय करती है।

By Pankaj Singh
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क्या नाना-नानी की संपत्ति में होता है नाती-नातिन का हिस्सा? जानिए कोर्ट क्या कहता है इस पर
नाना-नानी की संपत्ति

भारतीय परिवार व्यवस्था में जब प्रॉपर्टी (Property) की बात आती है, तो नाना-नानी की संपत्ति को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या नाती या नातिन को इसमें कोई कानूनी अधिकार (Legal Rights) है? यह प्रश्न तब और गंभीर हो जाता है जब संपत्ति की कीमत काफी अधिक हो और रिश्तेदार इस पर खुलकर बात करने से बचते हों। सही जानकारी के अभाव में लोग भ्रमित रहते हैं। इस लेख में हम इसी विषय को विस्तार से समझेंगे और बताएंगे कि हिंदू लॉ (Hindu Law) के तहत आपकी स्थिति क्या हो सकती है।

प्रॉपर्टी कितने प्रकार की होती है और इससे क्या फर्क पड़ता है?

भारत के कानून के अनुसार, संपत्ति को मुख्यतः दो भागों में बांटा गया है:
एनसेस्टरल प्रॉपर्टी (Ancestral Property) और सेल्फ-एक्वायर्ड प्रॉपर्टी (Self-Acquired Property)।

एनसेस्टरल प्रॉपर्टी वह होती है जो चार पीढ़ियों तक बिना बंटवारे के पुरुष वंश में चलती रहती है। इस पर अगली पीढ़ी का जन्म से ही अधिकार बन जाता है। वहीं, सेल्फ-एक्वायर्ड प्रॉपर्टी वह होती है जिसे किसी ने अपनी मेहनत की कमाई से खरीदा हो, या फिर उपहार, दान या वसीयत में मिली हो। इस पर मालिक की इच्छा सर्वोपरि होती है।

सेल्फ-एक्वायर्ड प्रॉपर्टी में नाती-नातिन का क्या हक है?

हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 (Hindu Succession Act 1956) के अनुसार, अगर नाना-नानी की संपत्ति सेल्फ-एक्वायर्ड है तो वो अपनी मर्जी से उसे किसी को भी दे सकते हैं। यानी नाती या नातिन को इस पर तब तक कोई हक नहीं होता जब तक वसीयत में उनका नाम न लिखा गया हो।

लेकिन अगर नाना-नानी का निधन हो जाता है और उन्होंने वसीयत नहीं बनाई है, तो संपत्ति उनके कानूनी वारिसों में बंटेगी। ऐसे में बेटी (यानी आपकी मां) को हिस्सा मिलेगा और अगर मां जीवित नहीं हैं, तो फिर आप नाती या नातिन के रूप में उस हिस्से के कानूनी वारिस बन सकते हैं।

एनसेस्टरल प्रॉपर्टी में नाती-नातिन का अधिकार कैसे तय होता है?

अगर प्रॉपर्टी एनसेस्टरल यानी पुश्तैनी है, तो फिर मामला बिल्कुल अलग हो जाता है। हिंदू कानून के अनुसार, इस तरह की संपत्ति में मालिक की मर्जी नहीं चलती। यह सर्वाइवरशिप राइट्स (Survivorship Rights) के तहत अगली पीढ़ी को स्वतः ट्रांसफर होती है। यदि आपकी मां अकेली संतान हैं, तो उन्हें इस संपत्ति का पूरा हिस्सा मिलेगा और आप उनके उत्तराधिकारी होने के नाते उस हिस्से के कानूनी दावेदार बन जाएंगे।

क्या मां की सामाजिक-आर्थिक स्थिति भी भूमिका निभाती है?

बिलकुल। अगर आपकी मां अपने पिता यानी नाना पर आर्थिक रूप से निर्भर थीं या जीवन यापन में सक्षम नहीं थीं, तो उनकी मृत्यु के बाद आप नाती या नातिन के रूप में उनके हिस्से पर हक जता सकते हैं। यह हक तब और स्पष्ट हो जाता है जब आपकी मां नाना-नानी की वसीयत में शामिल नहीं थीं लेकिन कानूनी वारिस थीं। इस स्थिति में आप उत्तराधिकारी बन सकते हैं।

वसीयत (Will) का महत्व क्या है?

वसीयत का होना या न होना बहुत बड़ा फर्क पैदा करता है। यदि नाना-नानी ने वसीयत बनाकर उसमें किसी नाती या नातिन को संपत्ति देने की बात की है, तो वह व्यक्ति उसका वैध उत्तराधिकारी बन जाता है।

लेकिन अगर वसीयत नहीं बनाई गई है, तो फिर हिंदू सक्सेशन एक्ट लागू होगा और संपत्ति उनके वारिसों में तय हिस्सों के अनुसार बंटेगी। इस स्थिति में भी नाती या नातिन को हक मिल सकता है, पर यह पूरी तरह माता-पिता की स्थिति पर निर्भर करेगा।

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Pankaj Singh

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