
संसद की स्थायी समिति ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत दिए जाने वाले रोजगार की अवधि को 100 दिनों से बढ़ाकर 150 दिन करने की सिफारिश की है। यह कदम ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक अस्थिरता को कम करने की दिशा में एक बड़ा निर्णय साबित हो सकता है। समिति का मानना है कि मौजूदा 100 दिन का रोजगार आज के आर्थिक और सामाजिक संदर्भों में अपर्याप्त है। इसलिए श्रमिकों को अधिक कार्यदिवस देकर उन्हें बेहतर आजीविका का साधन मुहैया कराया जाना जरूरी है।
₹400 न्यूनतम मेहनताना
वर्तमान में मनरेगा के तहत जो मजदूरी दी जा रही है, वह ग्रामीण श्रमिकों की न्यूनतम आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पा रही है। इस स्थिति को देखते हुए समिति ने श्रमिकों के लिए न्यूनतम दैनिक मेहनताना ₹400 तय करने की सिफारिश की है। समिति का मानना है कि सम्मानजनक जीवन यापन के लिए यह जरूरी है कि मजदूरी दर को मौजूदा महंगाई और आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप संशोधित किया जाए।
वन क्षेत्रों और सूखा प्रभावित इलाकों में 200 दिन रोजगार देने की मांग
सिफारिशों में यह भी कहा गया है कि वन क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और सूखा प्रभावित क्षेत्रों के श्रमिकों को 200 दिनों तक रोजगार दिया जाए। वर्तमान में इन विशेष श्रेणियों के लिए 150 दिन का प्रावधान है, जिसे बढ़ाकर 200 दिन करने से इन समुदायों की आजीविका में अधिक स्थायित्व आएगा और उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
स्वतंत्र सर्वेक्षण से मापी जाएगी योजना की प्रभावशीलता
समिति ने यह भी सिफारिश की है कि मनरेगा की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए एक स्वतंत्र और राष्ट्रीय स्तर का सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए। यह सर्वेक्षण श्रमिकों की संतुष्टि, भुगतान में देरी, योजना में भागीदारी और वित्तीय अनियमितताओं जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगा। इससे योजना की कमियों की पहचान करके उसमें आवश्यक सुधार किए जा सकेंगे।
सोशल ऑडिट और पारदर्शिता
रिपोर्ट में सोशल ऑडिट की प्रक्रिया को और अधिक सुदृढ़ करने की जरूरत पर बल दिया गया है। समिति ने ग्रामीण विकास मंत्रालय से कहा है कि वह सोशल ऑडिट का एक कैलेंडर निर्धारित करे ताकि समयबद्ध रूप से ऑडिट हो और योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।
मजदूरी भुगतान में देरी पर मुआवजा दर बढ़ाने की मांग
श्रमिकों को समय पर मजदूरी नहीं मिलने की समस्या को गंभीरता से लेते हुए समिति ने देरी से भुगतान पर दिए जाने वाले मुआवजे की दर में वृद्धि की सिफारिश की है। यह सुधार सुनिश्चित करेगा कि श्रमिकों को उनके कार्य का उचित पारिश्रमिक समय पर मिले और योजनाओं पर उनका भरोसा बना रहे।
‘जाब कार्ड’ खत्म करने की प्रक्रिया पर चिंता
2021-22 में लगभग 50.31 लाख जाब कार्ड मामूली त्रुटियों या आधार से मिलान की समस्याओं के चलते रद्द कर दिए गए थे। यह आंकड़ा चिंता का विषय है क्योंकि इससे कई पात्र श्रमिक योजना से बाहर हो गए। समिति ने सिफारिश की है कि मैनुअल सत्यापन और सुधार की प्रणाली अपनाई जाए जिससे इन श्रमिकों को दोबारा योजना से जोड़ा जा सके।