
बैंक एफडी-FD यानी फिक्स्ड डिपॉजिट भारतीय निवेशकों के लिए वर्षों से एक सुरक्षित और लोकप्रिय विकल्प रहा है। खासतौर पर जब बात जोखिम से बचते हुए स्थिर रिटर्न पाने की हो, तो लोग अक्सर बैंक एफडी को प्राथमिकता देते हैं। इसी क्रम में देश का सबसे बड़ा सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने हाल ही में 15 अप्रैल 2025 से अपनी एफडी ब्याज दरों में बदलाव की घोषणा की है, जिससे निवेशकों के लिए रणनीति बनाना और भी आवश्यक हो गया है।
एसबीआई की नई ब्याज दरें
SBI ने 1 से 3 साल की एफडी अवधि पर 10 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की है। यह बदलाव सामान्य ग्राहकों के साथ-साथ वरिष्ठ नागरिकों पर भी समान रूप से लागू होगा। इस संशोधन के बाद बैंक अब 7 दिन से लेकर 10 साल की एफडी अवधि के लिए सामान्य नागरिकों को 3.50% से 6.90% और वरिष्ठ नागरिकों को 4% से 7.50% के बीच ब्याज दर दे रहा है।
विशेष रूप से, 1 वर्ष से लेकर 2 वर्ष से कम अवधि वाली एफडी के लिए वरिष्ठ नागरिकों की ब्याज दर 7.30% से घटाकर 7.20% कर दी गई है, वहीं 2 वर्ष से 3 वर्ष से कम अवधि की एफडी पर ब्याज दर अब 7.50% से घटकर 7.40% रह गई है। यह बदलाव भले ही मामूली लगें, लेकिन लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए यह एक महत्वपूर्ण संकेत है कि वे अपने निवेश पोर्टफोलियो की दोबारा समीक्षा करें।
अमृत वृष्टि योजना
SBI ने अपनी विशेष “अमृत वृष्टि” एफडी योजना को फिर से शुरू किया है, जो अब 15 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगी। इस योजना के तहत निवेश अवधि 444 दिनों की तय की गई है, जिसमें सामान्य नागरिकों को 7.05% की संशोधित ब्याज दर दी जा रही है। पहले यह दर 7.25% थी।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए इसमें अतिरिक्त लाभ की व्यवस्था की गई है। उन्हें 7.55% प्रति वर्ष की ब्याज दर दी जा रही है, जो पहले 7.75% थी। यानी, 50 बेसिस प्वाइंट्स का लाभ अभी भी बना हुआ है, हालांकि कुल ब्याज दर में पहले की तुलना में थोड़ी कमी की गई है। यह योजना उन निवेशकों के लिए आकर्षक हो सकती है जो सीमित समय के लिए अपेक्षाकृत ऊंची ब्याज दर चाहते हैं।
निवेशकों के लिए क्या संकेत हैं यह बदलाव?
SBI के इस कदम को व्यापक रूप से देश की मौद्रिक नीति और बाजार स्थितियों के अनुरूप माना जा सकता है। महंगाई और रेपो रेट की स्थिति को देखते हुए बैंक ब्याज दरों में हल्की नरमी लाना स्वाभाविक है। निवेशकों को इस समय अपने फंड को रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy, गोल्ड बॉन्ड, या एसआईपी जैसे विविध माध्यमों में भी सोचने की जरूरत है, ताकि दीर्घकालिक रिटर्न को बेहतर बनाया जा सके।