
भारतीय रेलवे की स्वदेशी तकनीक कवच (Kavach) अब और भी एडवांस हो रही है। ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने के उद्देश्य से शुरू की गई यह ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम अब अपने नए वर्जन कवच 5.0 (Kavach 5.0) में विकसित हो रही है, जो खासतौर पर देश की मेट्रो और सबअर्बन रेलवे नेटवर्क की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार की जा रही है। रेलवे के अनुसार, यह नई तकनीक दिसंबर तक तैयार हो जाएगी और ट्रेनों की सुरक्षा, स्पीड और ट्रैक क्षमता को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी।
स्वदेशी टेक्नोलॉजी से रेलवे को नई दिशा
कवच एक पूरी तरह से भारतीय रेलवे द्वारा विकसित की गई स्वदेशी सुरक्षा प्रणाली है, जिसका उद्देश्य ट्रेनों की टक्कर जैसी घटनाओं को रोकना और रेल संचालन को स्मार्ट और सुरक्षित बनाना है। अब इसका अपग्रेडेड वर्जन कवच 5.0 मेट्रो और सबअर्बन ट्रेनों के लिए एक गेमचेंजर साबित हो सकता है। इस नई प्रणाली में लोकोमोटिव और सिग्नलिंग सिस्टम का इंटीग्रेशन होगा, जिससे ट्रेन की रियल टाइम पोजिशन का ट्रैक रखा जा सकेगा।
ट्रेन सुरक्षा के साथ बढ़ेगी रफ्तार और फ्रिक्वेंसी
कवच 5.0 ट्रेनों के बीच की सुरक्षित दूरी को कम करने की सुविधा देगा, जिससे मेट्रो और सबअर्बन रूट्स पर ट्रेनों की फ्रिक्वेंसी करीब 1.5 गुना तक बढ़ाई जा सकेगी। इसका सीधा असर मेट्रो सिटी में ट्रैफिक डेंसिटी पर पड़ेगा, जहां भीड़भाड़ की समस्या गंभीर है। इससे ट्रेनों का संचालन न सिर्फ सुरक्षित बल्कि ज्यादा समयबद्ध भी होगा। यात्रियों को कम वेटिंग टाइम के साथ तेज़ और सुगम ट्रैवल अनुभव मिलेगा।
मुंबई जैसे शहरों को मिलेगा बड़ा फायदा
भारत के सबसे व्यस्त सबअर्बन नेटवर्क में से एक, मुंबई को कवच 5.0 से सबसे ज्यादा फायदा होने की संभावना है। यहां रोज़ाना लाखों लोग लोकल ट्रेनों से यात्रा करते हैं, और भीड़भाड़ के चलते ट्रेनों की देरी आम समस्या है। कवच 5.0 से न केवल ट्रेन ट्रैफिक को बेहतर तरीके से मैनेज किया जा सकेगा, बल्कि पैसेंजर्स को ज्यादा सुरक्षित और समय पर सेवा भी उपलब्ध कराई जा सकेगी।
सुरक्षा के साथ स्मार्ट रेलवे की दिशा में कदम
यह तकनीक भारतीय रेलवे की स्मार्ट रेलवे की ओर बढ़ती रणनीति का हिस्सा है, जहां टेक्नोलॉजी के माध्यम से सुरक्षा, समयबद्धता और सुविधाओं को उच्च स्तर पर ले जाया जा रहा है। कवच 5.0 में सिग्नलिंग, लोको कंट्रोल और ऑटोमैटिक ब्रेकिंग जैसी सुविधाएं शामिल होंगी, जिससे किसी भी इमरजेंसी स्थिति में ट्रेनें खुद रुक सकेंगी। इससे यात्रियों के लिए जोखिम लगभग शून्य हो जाएगा।