बंगाल में वक्फ कानून को ममता सरकार का इनकार! क्या राज्य सरकारें रोक सकती हैं केंद्र का कानून?

क्या कोई राज्य सरकार संसद से पास कानून को लागू करने से मना कर सकती है? ममता बनर्जी के वक्फ कानून पर इनकार से उठे बड़े सवाल, जानिए संविधान, कानून और राजनीति का असली खेल – पूरी रिपोर्ट अंदर पढ़ें!

By Pankaj Singh
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बंगाल में वक्फ कानून को ममता सरकार का इनकार! क्या राज्य सरकारें रोक सकती हैं केंद्र का कानून?
बंगाल में वक्फ कानून को ममता सरकार का इनकार! क्या राज्य सरकारें रोक सकती हैं केंद्र का कानून?

Waqf Amendment Act West Bengal को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर इस कानून को 8 अप्रैल 2025 से देशभर में लागू कर दिया गया है। यह अधिसूचना संसद के दोनों सदनों से वक्फ संशोधन विधेयक पास होने और राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद जारी की गई। लेकिन इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि इस कानून को वह राज्य में लागू नहीं होने देंगी। उनका कहना है कि वह अल्पसंख्यकों और उनकी संपत्तियों की रक्षा करेंगी।

इस बयान के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या राज्य सरकारें संसद द्वारा पास किए गए किसी कानून को अपने राज्य में लागू करने से इनकार कर सकती हैं? क्या संविधान इसकी इजाजत देता है या यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी है?

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संसद से पास कानून का पालन करना राज्यों की जिम्मेदारी

संविधान के अनुसार, किसी भी संसद से पारित कानून को देश के हर राज्य में लागू किया जाना आवश्यक होता है। अनुच्छेद 256 इस बारे में स्पष्ट रूप से कहता है कि केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करना राज्यों का संवैधानिक दायित्व है। कोई भी राज्य सरकार किसी केंद्रीय कानून को लागू करने से मना नहीं कर सकती। ऐसा करना संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन माना जाएगा।

वरिष्ठ अधिवक्ताओं का कहना है कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को लागू करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, और अगर वह ऐसा नहीं करती है तो यह एक संवैधानिक संकट की स्थिति बन सकती है।

ममता बनर्जी का बयान केवल राजनीतिक स्टैंड?

Waqf Amendment Act को लेकर ममता बनर्जी का बयान एक राजनीतिक विरोध के रूप में देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि राज्य सरकारों के पास कोई अधिकार नहीं होता कि वह संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून को लागू करने से मना करें। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब तीन तलाक कानून आया था, तब भी कुछ राज्यों ने इसका विरोध किया था लेकिन वह कानून पूरे देश में प्रभावी रूप से लागू हुआ।

अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री कह दे कि वह किसी कानून को लागू नहीं होने देगा, तो भी पुलिस और अन्य प्रशासनिक संस्थाएं उस कानून के तहत कार्यवाही करने से पीछे नहीं हट सकतीं।

क्या राज्य सरकार अदालत जा सकती है?

अगर किसी राज्य को लगता है कि संसद द्वारा पारित कोई कानून उनके राज्य के लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करता है या उससे सामाजिक संतुलन बिगड़ सकता है, तो वह Supreme Court का दरवाजा खटखटा सकता है। यानी संवैधानिक उपायों के तहत उस कानून की वैधता को चुनौती दी जा सकती है, लेकिन तब तक उस कानून को लागू करना ही होगा।

राज्य सरकारें यह दावा कर सकती हैं कि कानून उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता या उनके राज्य के हितों के खिलाफ है, लेकिन जब तक वह कानून संविधान द्वारा असंवैधानिक घोषित नहीं किया जाता, तब तक उसे लागू करना बाध्यकारी होता है।

इससे पहले भी हो चुका है विरोध

यह पहला मौका नहीं है जब किसी राज्य सरकार ने केंद्र के कानून का विरोध किया हो। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के समय भी पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों ने इसका विरोध किया था और राज्य में इसे लागू करने से इनकार किया था। लेकिन फिर भी वह कानून कानूनी रूप से प्रभावी रहा और इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।

ऐसे मामलों में राज्यों का विरोध सिर्फ राजनीतिक रूप में सामने आता है लेकिन संवैधानिक तौर पर इसकी कोई वैधता नहीं होती।

अल्पसंख्यकों की संपत्ति को लेकर आशंका

ममता बनर्जी का यह कहना कि वह अल्पसंख्यकों की संपत्तियों की रक्षा करेंगी, इस बयान के पीछे की राजनीतिक भावना को दर्शाता है। लेकिन वक्फ कानून में संशोधन का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का पारदर्शी प्रबंधन और अवैध कब्जों से सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस कानून के लागू होने से वक्फ संपत्तियों पर नजर रखने और उनके गलत इस्तेमाल को रोकने में मदद मिल सकती।

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Pankaj Singh

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