
कभी मकान मालिक और किराएदार के बीच विवाद एक आम बात थी, जिसके चलते कई सालों तक कानूनी प्रक्रिया चलती रहती थी। ऐसी स्थिति में भविष्य में होने वाली दिक्कतों के डर से कई बार मकान मालिक किराए पर मकान या दुकान देने से कतराते थे। हाल ही में लखनऊ हाईकोर्ट की एक बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जो भविष्य में इस प्रकार के विवादों का हल हो सकता है। यह फैसला 30 साल पुरानी एक याचिका को खारिज करने के बाद आया, जिसमें कोर्ट ने किराएदार पर 15 लाख रुपये का हर्जाना लगाया है। इसके अलावा, कोर्ट ने लखनऊ के डीएम को निर्देश दिया कि अगर यह रकम दो महीने में जमा नहीं की जाती तो वह इसकी वसूली करवाएं।
विवाद की शुरुआत और लंबी कानूनी लड़ाई
यह विवाद 1979 से शुरू हुआ था जब किराएदार ने किसी भी प्रकार का किराया नहीं दिया। 1981 में जब संपत्ति की स्वामिनी कस्तूरी देवी ने बेटे के लिए व्यवसाय शुरू करने के उद्देश्य से संपत्ति खाली करने की मांग की, तो किराएदार ने इसे मुकदमों में उलझा दिया। कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि लगभग 40 सालों तक इस विवाद के कारण एक पूरी पीढ़ी को अपने अधिकारों से वंचित किया गया।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने किराएदार की याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया कि किराएदार पर 15 लाख रुपये का हर्जाना लगाया जाए। यह राशि दो महीने के भीतर जमा करनी होगी, और यदि ऐसा नहीं होता है, तो लखनऊ के डीएम को इस रकम की वसूली के आदेश दिए गए हैं। यह फैसला एक उदाहरण बन सकता है कि लंबे समय तक चलने वाले किराएदार-मालिक विवादों को किस तरह हल किया जा सकता है।
किराएदार की ओर से दलीलें
किराएदार के अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने अपनी दलील में कहा कि यह विवाद 1982 में शुरू हुआ था, जब स्वामिनी कस्तूरी देवी ने संपत्ति खाली करने का अनुरोध किया था, जिसे किराएदार ने ठुकरा दिया। इसके बाद कई सालों तक मामले में कड़ी कानूनी प्रक्रिया चलती रही। 1995 में स्वामिनी के पक्ष में फैसला आया, लेकिन किराएदार ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी, और यह मामला तब से विचाराधीन था।