
महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में विभिन्न स्थानीय विकास परियोजनाओं के लिए खनिजों के उपयोग को मंजूरी दे दी है। इस फैसले के तहत मिट्टी, छोटे पत्थर, बोल्डर और मिट्टी की रेत जैसे खनिजों का उपयोग किया जाएगा, जिसका मुख्य उद्देश्य राज्य में विकास कार्यों को तेज करना और स्थानीय संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करना है। यह निर्णय खासकर किसानों, आवास योजना के लाभार्थियों और ग्रामीण विकास परियोजनाओं से जुड़ी कार्यों में सहायक साबित होगा।
स्थानीय विकास में खनिजों का योगदान
महाराष्ट्र सरकार की यह पहल ग्रामीण और शहरी इलाकों में जल निकायों, सड़क निर्माण और बांधों के विकास में मददगार साबित होगी। किसानों को तालाबों का निर्माण करने, जल निकायों को गहरा या सीधा करने के लिए आवश्यक खनिज सामग्री की उपलब्धता होगी। इसके अलावा, इस नीति का लाभ ‘मातोश्री ग्राम समृद्धि शेट (खेत) सड़क योजना’ के तहत ग्रामीण सड़कों के निर्माण में भी मिलेगा। इस तरह से, खनिजों का उपयोग न केवल विकास कार्यों को सरल बनाएगा बल्कि इन्हें पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी स्थिर बनाए रखेगा।
किसानों और आवास योजना के लाभार्थियों को लाभ
इस निर्णय का सबसे बड़ा लाभ उन किसानों को मिलेगा जो अपने खेतों में तालाब निर्माण की योजना बना रहे हैं। उन्हें अब रॉयल्टी या अनुमति शुल्क से राहत मिलेगी, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति पर कम दबाव पड़ेगा। इसी तरह, महाराष्ट्र की नई आवास योजनाओं के लाभार्थियों को भी इस नीति का सीधा लाभ मिलेगा, क्योंकि निर्माण कार्य उनके लिए अब सस्ता और आसान हो जाएगा।
रॉयल्टी और अनुमति शुल्क की छूट
आमतौर पर खनिजों के उपयोग पर रॉयल्टी और अनुमति शुल्क लिया जाता है, लेकिन इस नई नीति के तहत किसानों और आवास योजना के लाभार्थियों के लिए इन खनिजों के उपयोग पर कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। यह निर्णय राज्य के विकास कार्यों को गति देगा और किसानों को वित्तीय रूप से सशक्त बनाएगा। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं के कार्य भी तेज़ी से पूरे होंगे, जिससे समग्र विकास को बढ़ावा मिलेगा।
राज्य की नई रेत खनन नीति
राज्य के राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने हाल ही में नई रेत खनन नीति की घोषणा की। इसका उद्देश्य अवैध खनन को रोकना और पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ावा देना है। इस नीति के तहत रेत खनन के क्षेत्र में अनुशासन और पारदर्शिता लाई जाएगी, जिससे राज्य में खनिजों का वैधानिक उपयोग होगा और पर्यावरणीय संतुलन बना रहेगा।