बैंक एफडी (Fixed Deposit) निवेश के लिए सबसे सुरक्षित और लोकप्रिय विकल्पों में से एक है। म्यूचुअल फंड और स्टॉक मार्केट में लोगों की बढ़ती दिलचस्पी के बावजूद, बैंक FD का महत्व आज भी बरकरार है। इसमें निवेशकों को फिक्स और गारंटीड रिटर्न मिलता है। खास बात यह है कि नौकरीपेशा लोगों के साथ आम परिवार भी इसे एक भरोसेमंद विकल्प मानते हैं। अगर आप अपनी पत्नी के नाम से एफडी कराते हैं, तो न केवल रिटर्न बढ़ा सकते हैं, बल्कि टैक्स बचाने का भी बड़ा मौका मिलता है।
40,000 रुपये से ज्यादा ब्याज पर टीडीएस
फिक्स्ड डिपॉजिट पर 40,000 रुपये से अधिक ब्याज मिलने पर 10% टीडीएस कटता है। हालांकि, अगर आपकी पत्नी का आयकर ब्रैकेट कम है या वह हाउसवाइफ हैं, तो आप यह टीडीएस बचा सकते हैं। बैंक एफडी पर मिलने वाला ब्याज आपकी कुल आय में शामिल होता है, और इस पर उसी दर से टैक्स लगता है जो आपकी आय के लिए लागू है। लेकिन पत्नी के नाम से एफडी कराना इस समस्या का हल बन सकता है।
इतने से कम टैक्सेबल आय पर टीडीएस से छूट
यदि किसी व्यक्ति की कुल टैक्सेबल आय 2.5 लाख रुपये से कम है, तो एफडी पर मिलने वाले ब्याज पर टीडीएस नहीं काटा जाता। यह छूट हाउसवाइफ और लोअर टैक्स ब्रैकेट में आने वाली महिलाओं के लिए बड़ा फायदेमंद साबित हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, यदि आप अपने नाम से एफडी कराने पर टैक्स की ऊंची दर चुकाते हैं, तो वही एफडी पत्नी के नाम से कराने पर यह अतिरिक्त बोझ कम हो सकता है।
जॉइंट एफडी से अतिरिक्त लाभ
अगर आप अपनी पत्नी के साथ जॉइंट एफडी कराते हैं और उन्हें फर्स्ट होल्डर बनाते हैं, तो भी टैक्स बचत का फायदा लिया जा सकता है। इस प्रकार का खाता खुलवाने से ब्याज पर टैक्स का बोझ दोनों खाताधारकों के बीच विभाजित हो सकता है, जो कि कुल टैक्स देनदारी को कम करता है।
(FAQs)
प्रश्न 1: क्या पत्नी के नाम से एफडी कराने पर टीडीएस बिल्कुल नहीं कटेगा?
उत्तर: यदि पत्नी की कुल टैक्स योग्य आय 2.5 लाख रुपये से कम है, तो एफडी पर टीडीएस नहीं कटेगा। लेकिन यदि उनकी आय इस सीमा से अधिक है, तो टीडीएस लागू हो सकता है।
प्रश्न 2: क्या जॉइंट एफडी टैक्स बचाने का बेहतर विकल्प है?
उत्तर: हां, जॉइंट एफडी में ब्याज की टैक्स देनदारी विभाजित हो सकती है, जो कि टैक्स बचाने में मददगार हो सकता है।
प्रश्न 3: एफडी ब्याज को आय में क्यों जोड़ा जाता है?
उत्तर: एफडी से मिलने वाला ब्याज आपकी अन्य आय का हिस्सा माना जाता है और इस पर उसी दर से टैक्स लगता है जो आपकी कुल आय पर लागू है।