
सुप्रीम कोर्ट ने एक हालिया सुनवाई के दौरान नकद लेन-देन पर गंभीर रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया है कि 2 लाख रुपये से अधिक के नकद भुगतान न केवल संदिग्ध माने जा सकते हैं, बल्कि वे सीधा IT Act की धारा 269ST का उल्लंघन भी हो सकते हैं। यह बात उस समय सामने आई जब एक संपत्ति विवाद से संबंधित याचिका में दावा किया गया कि वर्ष 2018 में एक अचल संपत्ति के लिए 75 लाख रुपये एडवांस के रूप में नकद दिए गए थे। इस पर अदालत ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
नकद लेन-देन पर प्रतिबंध: वित्त अधिनियम 2017 का उद्देश्य
वित्त अधिनियम 2017 में 1 अप्रैल से प्रभावी प्रावधानों के तहत 2 लाख रुपये या उससे अधिक के नकद लेन-देन को प्रतिबंधित किया गया था। इसका उद्देश्य काले धन पर अंकुश लगाना और Digital Economy की दिशा में एक ठोस कदम उठाना था। सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के क्रियान्वयन पर असंतोष जताते हुए कहा कि इसके बावजूद, जमीन स्तर पर इस कानून की अनदेखी की जा रही है, और यह एक चिंताजनक स्थिति है।
कोर्ट का निर्देश: सूचना आयकर विभाग को देना अनिवार्य
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया कि यदि कोई याचिका, केस या रजिस्ट्रेशन दस्तावेज में यह दावा किया जाता है कि 2 लाख रुपये या उससे अधिक की राशि कैश में दी गई है, तो अदालतों और सब-रजिस्टारों को यह सूचना तुरंत क्षेत्रीय आयकर प्राधिकरण को भेजनी चाहिए। ऐसा करना कानून के पालन की दिशा में एक अहम कदम होगा, ताकि आयकर विभाग उचित प्रक्रिया अपनाकर आवश्यक कार्रवाई कर सके।
जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस महादेवन की टिप्पणी
इस सुनवाई के दौरान, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन ने यह स्पष्ट किया कि “कानून केवल कागजों में नहीं रहना चाहिए, उसे लागू भी किया जाना चाहिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब सरकार ने 2017 में यह संशोधन लाया था, तो उसका उद्देश्य सिर्फ औपचारिकता नहीं था, बल्कि यह एक बड़ी रणनीतिक पहल थी काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ।
IT Act की धारा 269ST और दंडात्मक प्रावधान
IT Act की धारा 269ST के तहत यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी व्यक्ति एक दिन में, एक व्यक्ति से, एक अवसर पर 2 लाख रुपये से अधिक नकद प्राप्त नहीं कर सकता। इसके उल्लंघन पर धारा 271DA के तहत प्राप्त राशि के बराबर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। कोर्ट ने इसे स्पष्ट रूप से “नकद आधारित समानांतर अर्थव्यवस्था” को रोकने का अहम उपाय बताया।
नकद लेन-देन पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती क्यों जरूरी है?
इस तरह की सख्ती केवल कानून के पालन के लिए नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर Economic Transparency और Digital Transactions को बढ़ावा देने के लिए भी अहम है। कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि अधिकांश मामलों में आयकर विभाग तक ऐसे मामलों की जानकारी पहुंचती ही नहीं, जिससे गड़बड़ियों की संभावना और बढ़ जाती है।